Monday 29 August 2016

Swami

स्वामी जी को क्या पता कि पति-पत्नी के संबंध क्या होते हैं?

इससे भी बड़ी ग़लती यह की गई कि प्रचारक उस विषय की भी शिक्षा देने लगे, जिस विषय का उन्हें क,ख,ग भी पता न था। इसी ग़लती को स्वामी जी जीवन भर दोहराते रहे। स्वामी जी को क्या पता कि पति-पत्नी का अंतरंग संबंध क्या होता है और इस क्रिया को
कैसे किया जाता है?,
(1) जिस चीज़ को एक आदमी ने कभी छुआ तो क्या देखा तक न हो, वह उसके साथ व्यवहार की सही शिक्षा कैसे दे सकता है ?, इसके बावजूद स्वामी दयानंद जी पति-पत्नी को बताते हैं कि वे सहवास की परम गोपनीय क्रिया कैसे संपन्न करें?, देखिए-

‘पुरूष वीय्र्यस्थापन और स्त्री वीर्याकर्षण की जो विधि है उसी के अनुसार दोनों करें। जहां तक बने वहां तक ब्रह्मचर्य के वीय्र्य को व्यर्थ न जाने दें क्योंकि उस वीय्र्य वा रज से जो शरीर उत्पन्न होता है वह अपूर्व उत्तम सन्तान होता है। जब वीय्र्य का गर्भाशय में
गिरने का समय हो उस समय स्त्री और पुरूष दोनों स्थिर और नासिका के सामने नासिका, नेत्र के सामने नेत्र अर्थात् सूधा शरीर और अत्यन्त प्रसन्नचित्त रहैं, डिगें नहीं। पुरूष
अपने शरीर को ढीला छोड़े और स्त्री
वीय्र्यप्राप्ति समय अपान वायु को ऊपर खींचे, योनि को ऊपर संकोच कर वीर्य का ऊपर आकर्षण करके गर्भाशय में स्थित करे।पश्चात् दोनों शुद्ध जल से स्नान करें।‘ (सत्यार्थप्रकाश, चतुर्थसमुल्लास)

स्वामी जी के बताए तरीक़े से सहवास किया जाए तो वीर्ये गर्भाशय तक न पहुंच सकेगा बल्कि बाहर ही गिर जाएगा। स्वामी जी बताते हैं कि जब
वीर्य का गर्भाशय में गिरने का समय आए तो दोनों अपने शरीर के अंगों को सीधा कर लें। इस क्रिया के दौरान औरत-मर्द जैसे ही अपनी अपनी टाँगें सीधी करेंगे, लिंग गर्भाशय से दूर हो
जाएगा। लिंग छोटा हुआ तो बाहर ही निकल जाएगा। पेट मोटा हुआ तो भी यही होगा। औरत का क़द मर्द से थोड़ा छोटा होता है और कुछ मामलों में तो पत्नी का क़द अपने पति के मुक़ाबले डेढ़-दो फ़ुट तक छोटा होता है। ऐसे में पत्नी को पति की नाक के सामने अपनी नाक और उसकी आँखों के सामने अपनी आँखें लाने के लिए थोड़ा सा ऊपर को सरकना होगा। थोड़ा सा ऊपर को सरकते ही लिंग उसके गर्भाशय से और ज़्यादा दूर हो जाएगा या बाहर ही निकल जाएगा। सही बात का पता न हो तो आदमी को चुप रहना चाहिए। उसमें दख़लअंदाज़ी करना और अपनी कल्पना को वैज्ञानिक बताना लोगों के जीवन से खेलना है।

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