Sunday 28 August 2016

नियोग और नारी

पत्नी के सामान आदि को लेकर और यदि पति की मृत्यु की स्थिति में स्त्री दूसरा विवाह करती है तो पूर्व पति के सामान आदि को लेकर कुटुम्ब वालों में झगड़ा होगा।
(3) यदि स्त्री और पुरुष दूसरा विवाह करते हैं तो उनका पतिव्रत और स्त्रीव्रत धर्म नष्ट हो जाएगा।
(4) विधवा स्त्री के साथ कोई कुंवारा पुरुष और विधुर पुरुष के साथ कोई कुंवारी कन्या विवाह न करेगी। अगर कोई ऐसा करता है तो यह अन्याय और अधर्म होगा। ऐसी स्थिति में पुरुष और स्त्री को नियोग की आवश्यकता होगी और यही धर्म है। (4-134)
किसी ने स्वामी जी से सवाल किया कि अगर स्त्री अथवा पुरुष में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है और उनके कोई संतान भी नहीं है तब अगर पुनर्विवाह न हो तो उनका कुल नष्ट हो जाएगा। पुनर्विवाह न होने की स्थिति में व्यभिचार और गर्भपात आदि बहुत से दुष्ट कर्म होंगे। इसलिए पुनर्विवाह होना अच्छा है। (4-122)
जवाब दिया गया कि ऐसी स्थिति में स्त्री और पुरुष ब्रह्मचर्य में स्थित रहे और वंश परंपरा के लिए स्वजाति का लड़का गोद ले लें। इससे कुल भी चलेगा और व्यभिचार भी न होगा और अगर ब्रह्मचारी न रह सके तो नियोग से संतानोत्पत्ति कर ले। पुनर्विवाह कभी न करें। आइए अब देखते हैं कि ‘नियोग’ क्या है ?
अगर किसी पुरुष की स्त्री मर गई है और उसके कोई संतान नहीं है तो वह पुरुष किसी नियुक्त विधवा स्त्री से यौन संबंध स्थापित कर संतान उत्पन्न कर सकता है। गर्भ स्थिति के निश्चय हो जाने पर नियुक्त स्त्री और पुरुष के संबंध खत्म हो जाएंगे और नियुक्ता स्त्री दो-तीन वर्ष तक लड़के का पालन करके नियुक्त पुरुष को दे देगी। ऐसे एक विधवा स्त्री दो अपने लिए और दो-दो चार अन्य पुरुषों के लिए अर्थात कुल 10 पुत्र उत्पन्न कर सकती है। (यहाँ यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि यदि कन्या उत्पन्न होती है तो नियोग की क्या ‘शर्ते रहेगी ?) इसी प्रकार एक विधुर दो अपने लिए और दो-दो चार अन्य विधवाओं के लिए पुत्र उत्पन्न कर सकता है। ऐसे मिलकर 10-10 संतानोत्पत्ति की आज्ञा वेद में है।
इमां त्वमिन्द्र मीढ्वः सुपुत्रां सुभगां कृणु।
दशास्यां पुत्राना धेहि पतिमेकादशं कृधि।
(ऋग्वेद 10-85-45)
भावार्थ ः ‘‘हे वीर्य सेचन हार ‘शक्तिशाली वर! तू इस विवाहित स्त्री या विधवा स्त्रियों को श्रेष्ठ पुत्र और सौभाग्य युक्त कर। इस विवाहित स्त्री से दस पुत्र उत्पन्न कर और ग्यारहवीं स्त्री को मान। हे स्त्री! तू भी विवाहित पुरुष या नियुक्त पुरुषों से दस संतान उत्पन्न कर और ग्यारहवें पति को समझ।’’ (4-125)
वेद की आज्ञा है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्णस्थ स्त्री और पुरुष दस से अधिक संतान उत्पन्न न करें, क्योंकि अधिक करने से संतान निर्बल, निर्बुद्धि और अल्पायु होती है। जैसा कि उक्त मंत्र से स्पष्ट है कि नियोग की व्यवस्था केवल विधवा और विधुर स्त्री और पुरुषों के लिए नहीं है बल्कि पति के जीते जी पत्नी और पत्नी के जीते जी पुरुष इसका भरपूर लाभ उठा सकते हैं। (4-143)
आ घा ता गच्छानुत्तरा युगानि यत्र जामयः कृराावन्नजामि।
उप बर्बृहि वृषभाय बाहुमन्यमिच्छस्व सुभगे पति मत्।
(ऋग्वेद 10-10-10)
भावार्थ ः ‘‘नपुंसक पति कहता है कि हे देवि! तू मुझ से संतानोत्पत्ति की आशा मत कर। हे सौभाग्यशालिनी! तू किसी वीर्यवान पुरुष के बाहु का सहारा ले। तू मुझ को छोड़कर अन्य पति की इच्छा कर।’’
इसी प्रकार संतानोत्पत्ति में असमर्थ स्त्री भी अपने पति महाशय को आज्ञा दे कि हे स्वामी! आप संतानोत्पत्ति की इच्छा मुझ से छोड़कर किसी दूसरी विधवा स्त्री से नियोग करके संतानोत्पत्ति कीजिए।
अगर किसी स्त्री का पति व्यापार आदि के लिए परदेश गया हो तो तीन वर्ष, विद्या के लिए गया हो तो छह वर्ष और अगर धर्म के लिए गया हो तो आठ वर्ष इंतजार कर वह स्त्री भी नियोग द्वारा संतान उत्पन्न कर सकती है। ऐसे ही कुछ नियम पुरुषों के लिए हैं कि अगर संतान न हो तो आठवें, संतान होकर मर जाए तो दसवें और कन्या ही हो तो ग्यारहवें वर्ष अन्य स्त्री से नियोग द्वारा संतान उत्पन्न कर सकता है। पुरुष अप्रिय बोलने वाली पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से नियोग का लाभ ले सकता है। ऐसा ही नियम स्त्री के लिए है। (4-145)
प्रश्न सं0 149 में लिखा है कि अगर स्त्री गर्भवती हो और पुरुष से न रहा जाए और पुरुष दीर्घरोगी हो और स्त्री से न रहा जाए तो ऐसी स्थिति में दोनों किसी से नियोग कर पुत्रोत्पत्ति कर ले, परन्तु वेश्यागमन अथवा व्यभिचार कभी न करें। (4-149)
लिखा है कि नियोग अपने वर्ण में अथवा उत्तम वर्ण और जाति में होना चाहिए। एक स्त्री 10 पुरुषों तक और एक पुरुष 10 स्त्रियों तक से नियोग कर सकता है। अगर कोई स्त्री अथवा पुरुष 10वें गर्भ से अधिक समागम करे तो कामी और निंदित होते हैं। (4-142) विवाहित पुरुष कुंवारी कन्या से और विवाहित स्त्री कुंवारे पुरुष से नियोग नहीं कर सकती।
पुनर्विवाह और नियोग से संबंधित कुछ नियम, कानून, ‘शर्ते और सिद्धांत आपने पढ़े जिनका प्रतिपादन स्वामी दयानंद ने किया है और जिनको कथित लेखक ने वेद, मनुस्मृति आदि ग्रंथों से सत्य, प्रमाणित और न्यायोचित भी साबित किया है। व्यावहारिक पुष्टि हेतु कुछ ऐतिहासिक प्रमाण भी कथित लेखक ने प्रस्तुत किए हैं और साथ-साथ नियोग की खूबियां भी बयान की हैं। इस कुप्रथा को धर्मानुकूल और न्यायोचित साबित करने के लिए लेखक ने बौद्धिकता और तार्किकता का भी सहारा लिया है। कथित सुधारक ने आज के वातावरण में भी पुनर्विवाह को दोषपूर्ण और नियोग को तर्कसंगत और उचित ठहराया है। आइए उक्त धारणा का तथ्यपरक विश्लेषण करते हैं।
ऊपर (4-134) में पुनर्विवाह के जो दोष स्वामी दयानंद ने गिनवाए हैं वे सभी हास्यास्पद, बचकाने और मूर्खतापूर्ण हैं। विद्वान लेखक ने जैसा लिखा है कि दूसरा विवाह करने से स्त्री का पतिव्रत धर्म और पुरुष का स्त्रीव्रत धर्म नष्ट हो जाता है परन्तु नियोग करने से दोनों का उक्त धर्म ‘ाुद्ध और सुरक्षित रहता है। क्या यह तर्क मूर्खतापूर्ण नहीं है ? आख़िर वह कैसा पतिव्रत धर्म है जो पुनर्विवाह करने से तो नष्ट और भ्रष्ट हो जाएगा और 10 गैर पुरुषों से यौन संबंध बनाने से सुरक्षित और निर्दोष रहेगा ?
अगर किसी पुरुष की पत्नी जीवित है और किसी कारण पुरुष संतान उत्पन्न करने में असमर्थ है तो इसका मतलब यह तो हरगिज़ नहीं है कि उस पुरुष में काम इच्छा ;ैमगनंस कमेपतम) नहीं है। अगर पुरुष के अन्दर काम इच्छा तो है मगर संतान उत्पन्न नहीं हो रही है और उसकी पत्नी संतान के लिए किसी अन्य पुरुष से नियोग करती है तो ऐसी स्थिति में पुरुष अपनी काम तृप्ति कहाँ और कैसे करेगा ? यहाँ यह भी विचारणीय है कि नियोग प्रथा में हर जगह पुत्रोत्पत्ति की बात कही गई है, जबकि जीव विज्ञान के अनुसार 50 प्रतिशत संभावना कन्या जन्म की होती है। कन्या उत्पन्न होने की स्थिति में नियोग के क्या नियम, कानून और ‘शर्ते होंगी, यह स्पष्ट नहीं किया गया है ?
जैसा कि स्वामी जी ने कहा है कि अगर किसी स्त्री के बार-बार कन्या ही उत्पन्न हो तो भी पुरुष नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न कर सकता है। यहाँ यह तथ्य विचारणीय है कि अगर किसी स्त्री के बार-बार कन्या ही उत्पन्न हो तो इसके लिए स्त्री नहीं, पुरुष जिम्मेदार है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव जाति में लिंग का निर्धारण नर द्वारा होता है न कि मादा द्वारा।
यह भी एक तथ्य है कि पुनर्विवाह के दोष और हानियाँ तथा नियोग के गुण और लाभ का उल्लेख केवल द्विज वर्णों, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के लिए किया गया है। चैथे वर्ण ‘शूद्र को छोड़ दिया गया है। क्या ‘शुद्रों के लिए नियोग की अनुमति नहीं है ? क्या ‘शूद्रों के लिए नियोग की व्यवस्था दोषपूर्ण और पाप है ?
जैसा कि लिखा है कि अगर पत्नी अथवा पति अप्रिय बोले तो भी वे नियोग कर सकते हैं। अगर किसी पुरुष की पत्नी गर्भवती हो और पुरुष से न रहा जाए अथवा पति दीर्घरोगी हो और स्त्री से न रहा जाए तो दोनों कहीं उचित साथी देखकर नियोग कर सकते हैं। क्या यहाँ सारे नियमों और नैतिक मान्यताओं को लॉकअप में बन्द नहीं कर दिया गया है ? क्या नियोग का मतलब स्वच्छंद यौन संबंधों ;ैमग थ्तमम) से नहीं है ? क्या इससे निम्न और घटिया किसी समाज की कल्पना की जा सकती है?
कथित विद्वान लेखक ने नियोग प्रथा की सत्यता, प्रमाणिकता और व्यावहारिकता की पुष्टि के लिए महाभारत कालीन सभ्यता के दो उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। लिखा है कि व्यास जी ने चित्रांगद और विचित्र वीर्य के मर जाने के बाद उनकी स्त्रियों से नियोग द्वारा संतान उत्पन्न की। अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और एक दासी से विदुर की उत्पत्ति नियोग प्रक्रिया द्वारा हुई। दूसरा उदाहरण पाण्डु राजा की स्त्री कुंती और माद्री का है। पाण्डु के असमर्थ होने के कारण दोनों स्त्रियों ने नियोग विधि से संतान उत्पन्न की। इतिहास भी इस बात का प्रमाण है।
जहाँ तक उक्त ऐतिहासिक तथ्यों की बात है महाभारत कालीन सभ्यता में नियोग की तो क्या बात कुंवारी कन्या से संतान उत्पन्न करना भी मान्य और सम्मानीय था। वेद व्यास और भीष्म पितामह दोनों विद्वान महापुरुषों की उत्पत्ति इस बात का ठोस सबूत है। दूसरी बात महाभारत कालीन समाज में एक स्त्री पांच सगे भाईयों की धर्मपत्नी हो सकती थी। पांडव पत्नी द्रौपदी इस बात का ठोस सबूत है। तीसरी बात महाभारत कालीन समाज में तो बिना स्त्री संसर्ग के केवल पुरुष ही बच्चें पैदा करने में समर्थ होता था।
महाभारत का मुख्य पात्र गुरु द्रोणाचार्य की उत्पत्ति उक्त बात का सबूत है। चैथी बात महाभारतकाल में तो चमत्कारिक तरीके से भी बच्चें पैदा होते थे। पांचाली द्रौपदी की उत्पत्ति इस बात का जीता-जागता सबूत है। अतः उक्त समाज में नियोग की क्या आवश्यकता थी ? यहाँ यह भी विचारणीय है कि व्यास जी ने किस नियमों के अंतर्गत नियोग किया ? दूसरी बात नियोग किया तो एक ही समय में तीन स्त्रियों से क्यों किया? तीसरी बात यह कि एक मुनि ने निम्न वर्ण की दासी के साथ क्यों समागम किया ? चैथी बात यह कि कुंती ने नियम के विपरीत नियोग विधि से चार पुत्रों को जन्म क्यों दिया ? विदित रहे कि कुंती ने कर्ण, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन चार पुत्रों को जन्म दिया और ये सभी पाण्डु कहलाए। पांचवी बात यह कि जब उस समाज में नियोग प्रथा निर्दोष और मान्य थी तो फिर कुंती ने लोक लाज के डर से कर्ण को नदी में क्यों बहा दिया ? छठी बात यह है कि वे पुरुष कौन थे जिन्होंने कुंती से नियोग द्वारा संतान उत्पन्न की ? स्वामी जी ने बहुविवाह का निषेध किया है जबकि उक्त सभ्यता में बहुविवाह होते थे। अब क्या जिस समाज से स्वामी जी ने नियोग के प्रमाण दिए हैं, उस समाज को एक उच्च और आदर्श वैदिक समाज माना जाए ?
‘सत्यार्थ प्रकाश’ के ‘शंका-समाधान परिशिष्ट में पं0 ज्वालाप्रसाद ‘ार्मा द्वारा नियोग प्रथा के समर्थन में अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। लिखा है कि प्राचीन वैदिक काल में कुलनाश के भय से ऋषि-मुनि, विद्वान, महापुरुषों से नियोग द्वारा वीर्य ग्रहण कर उच्च कुल की स्त्रियां संतान उत्पन्न करती थी। जो प्रमाण पंडित जी ने प्रस्तुत किए हैं वे सभी महाभारत काल के हैं। क्या महाभारत काल ही प्राचीन वैदिक काल था ? क्या नियोग ही ऋषियों का एक मात्र प्रयोजन था?
यहाँ यह तथ्य भी विचारणीय है कि अगर स्वामी दयानंद सरस्वती नियोग को एक वेद प्रतिपादित और स्थापित व्यवस्था मानते थे तो उन्होंने इस परंपरा का खुद पालन करके अपने अनुयायियों के लिए आदर्श प्रस्तुत क्यों नहीं किया ? इससे स्वामी जी के चरित्र को भी बल मिलता और

4 comments:

  1. 1-फुर्ज शब्द का गलत अर्थ
    मुसलमान कुरान को अल्लाह की किताब बताते है .जो अरबी भाषा में है .और अरबी भाषा में जननांग (Genitalia)के लिए कई शब्द मौजूद होंगे , मगर अल्लाह ने अपनी कुरान में उन्ही शब्दों का प्रयोग किया है , जो मुहम्मद साहब के समय अनपढ़ , गंवार ,और उज्जड बद्दू लोग गाली के लिए प्रयोग करते थे.कुरान में ऐसा ही एक शब्द " फर्ज فرج " है जो इन तीन अक्षरों ( फे ف रे ر जीम ج) से बना है और इसका बहुवचन ( Plural )" फुरूज فروج" होता है जिसका असली अर्थ छुपाने के लिए कुरान के अनुवादक तरह तरह के शब्दों का प्रयोग करते हैं .चालक मुल्ले फुर्ज शब्द का अर्थ " गर्भाशय Uterus "बताकर लोगों को गुमराह करते रहते हैं जबकि गर्भाशय के लिए अरबी में " रहम رحم " शब्द प्रयुक्त होता है
    2-कुरान में फुर्ज का उल्लेख
    पूरी कुरान में अधिकतर " फुर्ज " का बहुवचन शब्द " फुरुज "प्रयुक्त किया गया है ,और मुल्लों उनके जो अर्थ दिए है ,अरबी के साथ हिंदी और अंग्रेजी में दिए जा रहे हैं .बात स्पष्ट हो सके .देखिये ,
    1." जिसने अपने सतीत्व की रक्षा की "


    " الَّتِي أَحْصَنَتْ فَرْجَهَا "
    "अल्लती खसलत फुरूजुहा "
    who guarded her chastity,Sura-at Tahrim 66:12


    2."अपनी गुप्त इन्द्रियों की रक्षा करने वाली "
    " وَالْحَافِظِينَ فُرُوجَهُمْ "
    "वल हाफिजूना फुरूजुहुम "
    and women who are mindful of their chastity, Sura- al Ahzab 33:35
    3.ईमान वाली स्त्रियों से कहो कि वह अपनी गुप्त इन्द्री की रक्षा करें "( mindful of their chastity)सूरा-अन नूर 24 :31
    " وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ "
    "व युफ्जिन फरूजहुन्न "
    4.हमने उस स्त्री की फुर्ज में अपनी रूह फूंक दी , जिसकी वह रक्षा कर रही थी "( guarded her chastity) (सूरा-अल अम्बिया 21 :91
    "والتي احصنت فرجها فنفخنا فيها من روحنا وجعلناها وابنها اية للعالمين "21:91

    दी गयी कुरान की इन सभी आयतों में " फुर्ज " का बहुवचन " फुरूज " प्रयोग किया गया है , जिसका अर्थ चालाक मौलवी हिंदी में " गुप्त इन्द्री , सतीत्व " और अंगरेजी में chastityबताकर लोगों को गुमराह करते रहते हैं .जबकि फुर्ज का अर्थ कुछ और ही है .जो विकीपीडिया में दिया है , देखिये ,
    In Arabic, the word Al-Farj (الفرج) means Vagina


    http://wikiislam.net/wiki/Allah:_I_sent_Jibreel_to_blow_into_Mary's_Vagina

    ReplyDelete
  2. आकाश में भी योनी
    दूसरी भाषा की तरह अरबी में भी अश्लील मुहावरे प्रचलित हैं जिसका उदहारण इस आयत से मिलता है
    " हमने आकाश को ऐसा बनाया और सजाया कि उसमे कोई त्रुटी ( फर्ज " नहीं है "( free of faults)सूरा -काफ 50 :6
    "أَفَلَمْ يَنْظُرُوا إِلَى السَّمَاءِ فَوْقَهُمْ كَيْفَ بَنَيْنَاهَا وَزَيَّنَّاهَا وَمَا لَهَا مِنْ فُرُوجٍ "
    "व मा लहा मन फुरूज "
    यदि हम इस आयत के अंतिम शब्दों का यह अर्थ करें "और उसमे कोई योनी नहीं है " तो यह अर्थ गलत होगा इसका सही अर्थ होगा " उसमे कोई चुतियापा नहीं है ''क्योंकि इस आयत में फुर्ज शब्द जब किसी वस्तु कमी या खोट होती है तब कहा जाता है

    ReplyDelete
  3. 1-पुरुष स्त्रियों से श्रेष्ठ हैं
    इस्लामी मान्यता है कि अल्लाह ने पुरुषों को श्रेष्ठ और स्त्रियों को हर प्रकार से निकृष्ट बनाया है . इसलिए स्त्रियों को समान अधिकार नहीं दिए जा सकते ,क्योंकि कुरान में लिखा है ,
    -पुरुषों को स्त्रियों से ऊंचा दर्जा प्राप्त है " सूरा -बकरा 2 :228
    पुरुष स्त्रियों से श्रेष्ठ है , क्योंकि अल्लाह ने उनको बडाई दी है " सूरा निसा 4 :34

    2-औरतें अय्याशी का साधन
    इस्लाम स्त्रियों को मनुष्य नहीं , उपभोग की ऐसी वस्तु मानता है .पुरुष जिसका जैसा भी चाहे उपयोग कर सकता है . और दिल भर जाने पर बिना कारण ही औरत को तलाक नयी औरत ला सकता है .यह अल्लाह ने कहा है
    तुम्हारे लिए आजादी है कि, तुंम दो दो , तीन तीन और चार चार शादियाँ कर लो "सूरा -निसा 4 :3
    तुम जब चाहो अपनी औरतों को छोड़ कर दूसरी औरतें रख सकते हो " सूरा 4 :20
    तुम जब चाहो अपनी औरतों को तलाक दे सकते हो .तुम्हें अल्लाह ढेरों नयी औरतें दे देगा और रब के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है "सूरा -अत तहरीम 66 :5

    3-महिलाविरोधी अँधा कानून

    इस्लामी कानून के चलते स्त्रियों को न्याय कभी नहीं मिल सकता .जब तक कुरान में यह आयत रहेगी
    यदि औरतें व्यभिचार में पकड़ी जाएँ और अपने पक्ष में चार गवाह पेश न कर सकें , तो उनको घर में तब तक बंद रखो जब तक वह ( भूखों ) न मर जाएँ "
    सूरा -निसा 4 :15
    यदि स्त्रियाँ अश्लील काम करती पायी जाएँ तो उनको दोगुनी सजा दी जाये "सूरा -अहज़ाब 33 :30

    4-पत्नी को पीटना जायज है
    मुसलमान अपनी जनसंख्या बढ़ा कर विश्व पर राज्य करना चाहते है , और औरतों को बच्चे पैदा करने की मशीन मानते हैं .और यदि औरत सहवास से मना करती है . तो पुरषों को उसे मारने पीटने का अधिकार है ,यही कुरान और हदीस कहती हैं
    रसूल ने कहा है , यदि कोई व्यक्ति अपनी औरत की पिटायी करता है , तो उस से इसके बारे में कोई सवाल नहीं किया जा सकता "
    अबू दाऊद -किताब 11 हदीस 2142
    तुम हाथों से एक कोई टहनी तोड़ लो .और उस से औरत की पिटाई करो " सूरा -साद 38 :44

    ReplyDelete
  4. -किताब 9 हदीस 3506
    5-स्त्रीशिक्षा का शत्रु इस्लाम
    इस्लाम चाहता है कि स्त्रियाँ सिर्फ घर के अन्दर रहकर नमाज पढ़ती रहें और बच्चे पैदा करती रहें .और आधुनिक शिक्षा से दूर रहें .क्योंकि यदि स्त्रियाँ शिक्षित हो जाएँगी तो इस्लाम की पोल खुल जाएगी .इसी डर से तालिबान ने मलाला नामकी लड़की को गोली मारी थी .इसके पीछे कुरान की यह आयत है ,
    स्त्रियाँ बस घर में रहें और सजधज न करें और नमाज पढ़ती रहें "सूरा -अहजाब 33 :33

    6-परिवार का शत्रु इस्लाम
    सभी धर्मों में परिवार के सभी सदस्यों का यथायोग्य आदर और सम्मान करने की शिक्षा दी गयी है . लेकिन इस्लाम परिवार के उन सभी लोगों को शत्रु मानने की शिक्षा देता है , जो रसूल की बेतुकी बातों का विरोध करते हों .
    हे ईमान वालो तुम अपने माँ बाप और भाइयों को अपना मित्र नहीं बनाना यदि वह मुसलमान नहीं बनते "सूरा -तौबा 9 :23
    तुम उन लोगों को अपना मित्र नहीं मानो , जो रसूल के विरोधी हों .चाहे वह उनके बाप ,बेटे , सगे भाई या घराने के लोग ही क्यों न हों "सूरा -मुजादिला 58 :22

    7-इस्लाम पाखंड
    जकारिया नायक जैसे अनेकों धूर्त इस्लाम के प्रचारक लोगों को धोखा देने , और इस्लाम की तारीफ करने के लिए अक्सर इस हदीस का हवाला देकर कहते हैं , कि इस्लाम में माता को सबसे बड़ा दर्जा दिया गया है ,वह हदीस इस प्रकार है ,
    मुआविया बिन जाहमिया ने रसूल से कहा कि मैं जिहाद पर जाना चाहता हूँ .रसूल ने उस से पूछा कि क्या तुम्हारे घर में माँ मौजूद है .जाहमिया ने कहा हाँ .तब रसूल ने कहा अपनी माँ के पास रहो . क्योंकि माँ के पैरों के नीचे जन्नत होती है "(Paradise is beneath feets of mother )
    ""الجنة تحت أقدام الأم "(अल जन्नत तहत इकदाम अल उम्म )

    सुन्नन नसाई -हदीस 3104 और यही बात मुसनद अहमद बाब 3 हदीस 429 में भी है .
    लेकिन यह हदीस " जईफ " यानि अपुष्ट , फर्जी , और बनावटी है .अर्थात झूठी है .क्योंकि मुहम्मद ने अपने सभी सहबियों से कहा था कि वह मेरी औरतों को अपनी माताएं समझें .जिनमे मुहम्मद की नौ साल की पत्नी आयशा भी शामिल है .कुरान में कहा है ,
    रसूल की पत्नियां ईमान वालों की माताएं है "सूरा -अहजाब 33 :6
    इस आयत में मुहम्मद साहब ने यह आदेश दिया है कि लोग रसूल की पत्नियों को माता के समान आदर करें . लेकिन हदीस में कहा है कि लोग अपनी सगी माता और बहिन से भी शादी कर सकते हैं .देखिये विडियो
    Islam adultery sex incest with own daughter allowed!!!!!!!

    http://www.youtube.com/watch?v=N2pLbhrl3ZY

    8-मुस्लिम औरतों की दुर्गति

    मुस्लिम औरतें चाहे किसी भी मुस्लिम देश में रहें ,कुरान और हदीसों के ऐसे ही स्त्री विरोधी नियमों के कारण उन पर हमेशा अत्याचार होते रहेंगे .और वह हमेशा दुखी होती रहेंगी .जैसा कि मुहम्मद साहब की प्रिय पत्नी आयशा ने इस हदीस में कहा है
    आयशा ने कहा कि मैंने दुनियां में इतनी दुखी और सताई गयी औरतें कहीं नहीं देखीं , जितनी दुखी और सताई गयी औरतें ईमान वालों (मुसलमानों ) के घर में होती हैं " सही बुखारी -जिल्द 7 किताब 72 हदीस 715 A
    इसलिए मुस्लिम लड़कियों को चाहिए कि जल्द ही किसी हिन्दू लडके से शादी कर लें . और जिंदगी भर सुखी जीवन बिताएं !

    http://www.thereligionofpeace.com/Quran/003-wife-beating.htm

    ReplyDelete