Sunday 28 August 2016

जब बहन ने भाई के सामने रखा इंडीसेंट प्रपोज़ल ,,, होसलेवाला

ऋग्वेद में यम और यमी आपस में भाई-बहन के रूप में आते हैं।

प्रस्तुत है उनके बीच संवाद :

यमी: "हे यम ! हमारे प्रथम दिन को कौन जान रहा है, कौन देख रहा है? फिर पुरुष इस बात को दूसरे से कह सकेगा? दिन मित्र देवता का स्थान है, यह दोनों ही विशाल हैं. इसलिए मेरे अभिमत के प्रतिकूल मुझे क्लेश देने वाले तुम, अनेक कर्मों वाले मनुष्यों के सम्बन्ध में किस प्रकार कहते हो ?(७) मेरी इच्छा है कि पति को शरीर अर्पण करने वाली पत्नी के सामान यम को अपनी देह अर्पित करूँ और वे दोनों पहिये जैसे मार्ग में संलिष्ट होते है, उसी प्रकार मैं होऊं (८) (यजुर्वेद १-१७)

यम : (अपनी बहन से कहता है) : " हे यमी ! देवदूत बराबर विचरण करते रहते हैं, वे सदा सतर्क रहते है, इसलिए हे मेरी धर्ममति को नष्ट करने की इच्छा वाली, तू मुझे छोड़ कर अन्य किसी की पत्नी बन और शीघ्रता से जा कर उसके साथ रथ-चक्र के सामान संश्लिस्ट हो (९) संभवत: आगे चलकर ऐसे ही दिन रात्रि आयें जब बहन अपने अबंधुत्व को पाने लगेंगी पर अभी ऐसा नहीं होता, अत: यमी ! तू सेवन समर्थ अन्य पुरुष के लिए अपना हाथ बढ़ा और मुझे छोड़ कर उसे ही पति बनाने की कामना कर" (१) 

यमी : अपने भाई (यम) का यह उत्तर सुन कर भी चुप नहीं होती बल्कि वह एक बार फिर अपने भाई को ताना देते हुए कहती है : " वह बन्धु कैसा, जिसके विद्यमान रहते भगिनी इच्छित कामना से विमुक्त रह जाए, वह कैसी भगिनी जिसके समक्ष बंधु संतप्त हो ? इसलिए तुम मेरी इच्छनुसार आचरण करो" (२)

यम : फिर इनकार करते हुए कहता है : " हे यमी ! मैं तेरी कामना को पूर्ण करने वाला नहीं हो सकता और तेरी देह से स्पर्श नहीं कर सकता. अब तू मुझे छोड़ कर अन्य पुरुष से इस प्रकार का सम्बन्ध स्थापित कर. मैं तेरे भार्यात्व की कामना नहीं करता (१३) हे यमी ! मैं तेरे शरीर का स्पर्श नहीं कर सकता. धर्म के ज्ञाता, भाई-भगिनी के ऐसे सम्बन्ध को पाप कहते हैं. मैं ऐसा करूँ तो यह कर्म मेरे ह्रदय, मन और प्राण का भी नाश कर देगा" (१४)

यह सुन कर तो मानों यमी बिलकुल निराश ही हो गई दिखती है वह कहती है : " हे यम ! तेरी दुर्बलता पर मुझे दू:ख है. तेरा मन मुझ में नहीं है, मैं तेरे ह्रदय को नहीं समझ सकी. वह किसी अन्य स्त्री से सम्बंधित होगा" (५)

अंत में यम यह कह कर अपनी बहन से पीछा छुड़ाता है, " हे यमी ! रस्सी जैसे अश्व में युक्त होती है, वृत्ति  जैसे वृक्ष को जकड़ती है, वैसे तू अन्य पुरुष से मिल. तुम दोनों परस्पर अनुकूल मन वाले होवो और फिर तू अत्यंत कल्याण वाले सुख को प्राप्त हो."

नियोग :-

वेद में नियोग के आधार पर एक स्त्री को ग्यारह तक पति रखने और उन से दस संतान पैदा करने की छूट दी गई है. नियोग किन-किन हालतों में किया जाना चाहिए, इसके बारे में मनु ने  इस प्रकार कहा है : 

विवाहिता स्त्री का विवाहित पति यदि धर्म के अर्थ परदेश गया हो तो आठ वर्ष, विद्या और कीर्ति के लिए गया हो तो छ: और धनादि कामना के लिए गया हो तो तीन वर्ष तक बाट देखने के पश्चात् नियोग करके संत्तान उत्पत्ति कर ले. जब विवाहित पति आवे तब नियुक्त छूट जावे.(१) वैसे ही पुरुष के लिए भी नियम है कि पत्नी बंध्या हो तो आठवें (विवाह से आठ वर्ष तक स्त्री को गर्भ न रहे), संतान हो कर मर जावे तो दसवें, कन्याएं ही पैदा करने वाली को ग्यारहवें वर्ष और अप्रिय बोलने वाली को तत्काल छोड़ कर दूसरी स्त्री से नियोग करके संतान पैदा करे. (मनु ९-७-८१) 

अब नियोग के बारे में आदेश देखिये :

हे पति और देवर को दुःख न देने वाली स्त्री, तू इस गृह आश्रम में पशुओं के लिए शिव कल्याण करने हारी, अच्छे प्रकार धर्म नियम में चलने वाले रूप और सर्व शास्त्र विध्या युक्त उत्तम पुत्र-पौत्रादि से सहित शूरवीर पुत्रों को जनने देवर की कामना करने वाली और सुख देनेहारी पति व देवर को होके इस गृहस्थ-सम्बन्धी अग्निहोत्री को सेवन किया कर. (अथर्व वेद १४-२-१८)

कुह............सधसथ आ.(ऋग्वेद १०.१.४०). उदिश्वर............बभूथ (ऋग्वेद १०.१८.८)हे स्त्री पुरुषो ! जैसे देवर को विधवा और विवाहित स्त्री अपने पति को समान स्थान शय्या में एकत्र हो कर संतान को सब प्रकार से उत्पन्न करती है वैसे तुम दोनों स्त्री पुरुष कहाँ रात्रि और कहाँ दिन में बसे थे कहाँ पदार्थों की प्राप्ति की ? और किस समय कहाँ वास करते थे ? तुम्हारा शयनस्थान कहाँ है ? तथा कौन व किस देश के रहने वाले हो ?इससे यह सिद्ध होता है देश-विदेश में स्त्री पुरुष संग ही में रहे और विवाहित पति के समान नियुक्त पति को ग्रहण करके विधवा स्त्री भी संतान उत्पत्ति कर ले. सोम:.................मनुष्यज: (ऋग्वेद मं १०,सू.८५, मं ४०)अर्थात : हे स्त्री ! जो पहला विवाहित पति तुझको प्राप्त होता, उसका नाम सुकुमारादी गनयुक्त होने से सोम, जो दूसरा नियोग से प्राप्त होता वह एक स्त्री से सम्भोग करे से गन्धर्व, जो दो के पश्चात तीसरा पति होता है वह अत्युष्ण तायुक्त होने से अग्निसग्यक और जो तेरे चोथे से ले के ग्यारहवें तक नियोग से पति होते वे मनुष्य नाम से कहाते है. इमां.................................. कृधि ( ऋग्वेद मं.१०,सू.८५ मं.४५) अर्थात : हे वीर्य सिंचन में समर्थ ऐश्वर्य युक्त पुरुष. तू इस विवाहित स्त्री व विधवा स्त्रियों को श्रेष्ठ पुत्र और सौभाग्युक्त कर. इस विवाहित स्त्री में दश पुत्र उतन्न कर और ग्यारहवीं स्त्री को मान. हे स्त्री ! तू भी विवाहित पुरुष से दस संतान उत्पन्न कर और ग्यारहवें पति को समझ.घी लेप कर नियोग करो :- मनु ने नियोग करने वाले के लिए यह नियम भी बनाया : विधवायां..........कथ्चन. (९-६०) अर्थात :- नियोग करने वाले पुरुष को चाहिए की सारे शरीर में घी लेपकर, रात में मौन धारण कर विधवा में एक ही पुत्र करे, दूसरा कभी न करें.

नियोग में भी जाति-भेद : मनु ने इस सम्बन्ध में कहा है : द्विजों को चाहिए कि विधवा स्त्री का नियोग किसी अन्य जाति के पुरुष से न कराये. दूसरी जाति के पुरुष से नियोग कराने वाले उसके पतिव्रता स्वरूप को सनातन धर्म को नष्ट कर डालते है.

2 comments:

  1. bhai tu itna bataa de ki adam k bete ne kisse shaadi karke bachche ko janma diya

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  2. r tmhaare me to apni chacheri,mameri,,khaleri kisi ko bhi propose kar dena bhi aam baat h,dusro pe kya blame karte ho kathmulle

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