Tuesday 30 August 2016

नियोग :- वेद में नियोग के आधार पर एक स्त्री को ग्यारह तक पति रखने और उन से दस संतान पैदा करने की छूट दी गई है. नियोग किन-किन हालतों में किया जाना चाहिए, इसके बारे में मनु ने  इस प्रकार कहा है : विवाहिता स्त्री का विवाहित पति यदि धर्म के अर्थ परदेश गया हो तो आठ वर्ष, विद्या और कीर्ति के लिए गया हो तो छ: और धनादि कामना के लिए गया हो तो तीन वर्ष तक बाट देखने के पश्चात् नियोग करके संत्तान उत्पत्ति कर ले. जब विवाहित पति आवे तब नियुक्त छूट जावे.(१) वैसे ही पुरुष के लिए भी नियम है कि पत्नी बंध्या हो तो आठवें (विवाह से आठ वर्ष तक स्त्री को गर्भ न रहे), संतान हो कर मर जावे तो दसवें, कन्याएं ही पैदा करने वाली को ग्यारहवें वर्ष और अप्रिय बोलने वाली को तत्काल छोड़ कर दूसरी स्त्री से नियोग करके संतान पैदा करे. (मनु ९-७-८१) अब नियोग के बारे में आदेश देखिये : हे पति और देवर को दुःख न देने वाली स्त्री, तू इस गृह आश्रम में पशुओं के लिए शिव कल्याण करने हारी, अच्छे प्रकार धर्म नियम में चलने वाले रूप और सर्व शास्त्र विध्या युक्त उत्तम पुत्र-पौत्रादि से सहित शूरवीर पुत्रों को जनने देवर की कामना करने वाली और सुख देनेहारी पति व देवर को होके इस गृहस्थ-सम्बन्धी अग्निहोत्री को सेवन किया कर. (अथर्व वेद १४-२-१८) कुह…………सधसथ आ.(ऋग्वेद १०.१.४०). उदिश्वर…………बभूथ (ऋग्वेद १०.१८.८)हे स्त्री पुरुषो ! जैसे देवर को विधवा और विवाहित स्त्री अपने पति को समान स्थान शय्या में एकत्र हो कर संतान को सब प्रकार से उत्पन्न करती है वैसे तुम दोनों स्त्री पुरुष कहाँ रात्रि और कहाँ दिन में बसे थे कहाँ पदार्थों की प्राप्ति की ? और किस समय कहाँ वास करते थे ? तुम्हारा शयनस्थान कहाँ है ? तथा कौन व किस देश के रहने वाले हो ?इससे यह सिद्ध होता है देश-विदेश में स्त्री पुरुष संग ही में रहे और विवाहित पति के समान नियुक्त पति को ग्रहण करके विधवा स्त्री भी संतान उत्पत्ति कर ले. सोम:……………..मनुष्यज: (ऋग्वेद मं १०,सू.८५, मं ४०)अर्थात : हे स्त्री ! जो पहला विवाहित पति तुझको प्राप्त होता, उसका नाम सुकुमारादी गनयुक्त होने से सोम, जो दूसरा नियोग से प्राप्त होता वह एक स्त्री से सम्भोग करे से गन्धर्व, जो दो के पश्चात तीसरा पति होता है वह अत्युष्ण तायुक्त होने से अग्निसग्यक और जो तेरे चोथे से ले के ग्यारहवें तक नियोग से पति होते वे मनुष्य नाम से कहाते है. इमां……………………………. कृधि ( ऋग्वेद मं.१०,सू.८५ मं.४५) अर्थात : हे वीर्य सिंचन में समर्थ ऐश्वर्य युक्त पुरुष. तू इस विवाहित स्त्री व विधवा स्त्रियों को श्रेष्ठ पुत्र और सौभाग्युक्त कर. इस विवाहित स्त्री में दश पुत्र उतन्न कर और ग्यारहवीं स्त्री को मान. हे स्त्री ! तू भी विवाहित पुरुष से दस संतान उत्पन्न कर और ग्यारहवें पति को समझ.घी लेप कर नियोग करो :- मनु ने नियोग करने वाले के लिए यह नियम भी बनाया : विधवायां……….कथ्चन. (९-६०) अर्थात :- नियोग करने वाले पुरुष को चाहिए की सारे शरीर में घी लेपकर, रात में मौन धारण कर विधवा में एक ही पुत्र करे, दूसरा कभी न करें. नियोग में भी जाति-भेद : मनु ने इस सम्बन्ध में कहा है : द्विजों को चाहिए कि विधवा स्त्री का नियोग किसी अन्य जाति के पुरुष से न कराये. दूसरी जाति के पुरुष से नियोग कराने वाले उसके पतिव्रता स्वरूप को सनातन धर्म को नष्ट कर डालते है…!!!

सर जी मैं भी आपके ब्लाग का एक रीडर हूँ । मुझे मेरे बहुत से सवालों के जवाव आपके ब्लाग से मिल गये । तो मुझे किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं हुयी । लेकिन एक सवाल मेरे मन में है ? उस पर जरा प्रकाश डालिये । ये नियोग विधि क्या होती है ?? मैंने गूगल में सर्च किया । तो कुछ खास मैटर नहीं मिल पाया । सिर्फ़ इतना पढने को मिला कि नियोग विधि में औरत अपने पति के अलावा किसी दूसरे पुरुष से प्रेगनेंट हो सकती है ? जैसे किसी देवर या रिश्तेदार से ? लेकिन पति की रजामन्दी से अगर पति को कोई फ़िजीकल प्राब्लम हो । या पति मर चुका हो ? ये महाभारत में भी क्या महाराज पान्डु के मरने के बाद कुन्ती ने बच्चे नियोग विधि से पैदा किये । ( देवताओं से फ़िजीकल रिलेशन द्वारा । ) तो क्या कर्ण भी नियोग विधि से पैदा हुआ ? पान्डवों की तरह ? इस पर जरा प्रकाश डालिये । शुक्रिया ।..( विनोद त्रिपाठी  ई मेल से । )
मेरी बात - भारतीय पौराणिक इतिहास में नियोग पद्धति से पैदा होने वालों की एक लम्बी लिस्ट है । जिसमें कर्ण । युधिष्ठर । भीम । अर्जुन । नकुल । सहदेव आदि पांडव हैं । इन्ही के पिता पांडु । ताऊ धृतराष्ट्र । चाचा विदुर भी नियोग से उत्पन्न हुये थे । परशुराम जी के पिता जमदग्नि ऋषि और उनके मामा । ( भृगु ऋषि जो परशुराम के बाबा GRAND FATHER लगते थे । उनके द्वारा दी गयी खीर खाकर । औरतों द्वारा पीपल और गूलर वृक्ष के आलिंगन से हुये थे । ) भी नियोग से पैदा हुये थे ।
अयोध्या के महाराज दशरथ के चारों पुत्र राम । लक्ष्मण । भरत । शत्रुहन भी । दशरथ के रिश्ते के बहनोई । श्रंगी ऋषि द्वारा । पुत्रेष्टि यग्य में आहुति देने । और परिणाम स्वरूप चरु यानी यग्य फ़ल रूपी खीर का प्रसाद यग्य से मिलने पर । रानियों द्वारा उसको खाने पर पैदा हुये थे । ) ईसामसीह भी नियोग से उत्पन्न हुये थे । हनुमान जी भी शंकर जी और अंजनी के नियोग से उत्पन्न हुये थे । इन प्रमुख और प्रसिद्ध लोगों के अलावा नियोग से पैदा होने वालों की संख्या अच्छी खासी है ।.. यह तो रही खास या किसी भी तरह की दिव्यता से जुङे लोगों की बात । अब जैसा कि आपने लिखा है । सामान्य स्त्री पुरुषों द्वारा नियोग ? जैसे किसी पुरुष के वीर्य में यह क्षमता नहीं हैं कि वह अपनी औरत को गर्भवती कर सके ।..या वह शारीरिक रूप से इतना अशक्त है कि अपनी पत्नी से संभोग नहीं कर सकता । ऐसी स्थिति में किसी दूसरे पुरुष द्वारा नियोग कैसे होता है ? और उसकी विधि क्या है ?
..आपकी बात का उत्तर देने से पहले मुझे एक बहुत मजेदार बात याद आती है ।..एक आदमी का बाप मर गया । वो बिलकुल नहीं रोया । माँ मरी । अब भी नहीं रोया । बहन मरी । भाई मरा । फ़िर भी नहीं रोया । लेकिन बीबी मरी..तो फ़ूट फ़ूटकर रोया । लोगों को बङी हैरत हुयी । अजीब आदमी है । माँ । बाप । भाई । बहन किसी के मरने पर एक आँसू तक नहीं निकला । बीबी के मरने पर बिलख बिलखकर रो रहा है ।..तब उस आदमी ने कहा । मुझे गलत मत समझो । भाईयो । जब बाप मरा । तो बाप की उमर वाले लोगों ने कहा । चिंता न करो । हम तुम्हारे बाप के समान हैं ( यानी खुद को अनाथ मत समझो । ) माँ के मरने पर भी उस उमर की औरतों ने ऐसा ही कहा । भाई के मरने पर । बहन के मरने पर । मुझे ये भी दूसरे मिल गये ।..पर बीबी के मरने पर..किसी एक भी औरत ने यह नहीं कहा । चिंता न करो । मैं तुम्हारी बीबी के समान हूँ ?? एक चुटकले जैसी यह कहानी हमारी नियोग पद्धति के बारे में बहुत कुछ कहती है ।
हिन्दू शास्त्रों में संतान उत्पत्ति में असमर्थ लोगों के लिये कई तरह के तरीके बताये हैं । जैसे कि विधवा औरत या किसी अक्षम पुरुष की पत्नी के लिये उसके देवर या ऐसे ही किसी संबन्धी द्वारा पूरे शरीर पर घी आदि का लेपन करके । तथा उस औरत द्वारा पूरे शरीर पर पीली पडुआ मिट्टी ( जो मुल्तानी मिट्टी जैसी होती है । ) का लेप करके । इतने दिनों तक संभोग करना चाहिये । जब तक गर्भ ठहर न जाय..आदि ।..अब क्योंकि प्राचीन समय में धर्म । कर्म । पाप । पुण्य । स्वर्ग । नरक आदि का आज की अपेक्षा अधिक बोलबाला था । अधिक दबदबा था । गाय आपसे मर जाय । सजा समाज देगा ? कोई धार्मिक सामाजिक गलती हो जाय । तो भी सजा धार्मिक ठेकेदार या ऐसे ही लोग देंगे । कहने का अर्थ हमारा सामाजिक कानून धर्म पुस्तकों में लिखे नियम से संचालित हो रहा था ।..इस तरह के माहौल में । सही बात कहने वाले । मजा लेने वाले । मौके का फ़ायदा उठाने वाले । उस समय भी । किसी समय भी । आज भी ..ये तीन तरह के लोग हमेशा रहे हैं । अब क्योंकि हमारी सनातन धर्म परम्परा आदिकाल से ही ब्राह्मणों । पंडितो । क्षत्रियों । ऋषियों । मुनियों आदि के हाथ रही । यानी इन्होंने जो कह दिया । वही सत्य हो गया । पंडित जो कहे । वही पत्रा में लिखा है ।
..परन्तु एक भारी अंतर था । शुरूआत के ब्राह्मण ( सबसे ऊँचे । बृह्म का हकीकी ग्यान रखने वाले । बृह्म में स्थित । बृह्म में विचरण करने वाले । या सीधी पहुँच रखने वाले थे । ) पंडित ( उस विषय के वास्तविक विद्वान । ) आदि वस्तुस्थिति का सही ग्यान रखते थे । पर समय गुजरने के साथ साथ उस पर लीक पीटने वाले ज्यादा रह गये ।..अब क्योंकि ये लोग दिव्यगुणों ( जिसके अन्य तत्व होते हैं । साधारण इंसान 5 तत्वों के बारे में ही जानता है । जबकि कुल तत्व 32 होते हैं । ) से वाकिफ़ नहीं थे । वास्तविक नियोग का रहस्य नहीं जानते थे ? और जीव बुद्धि द्वारा यही सोच सकते थे कि स्त्री पुरुष जब तक संभोग करके वीर्य का शुक्राणु और स्त्री डिम्ब का अंडाणु नहीं मिलायेंगे । संतान पैदा नहीं होगी । यह उसी तरह का मजाकिया सवाल है कि पहले मु्र्गी हुयी या अंडा ? अगर आप कहें । मुर्गी । तो मुर्गी बिना अंडे के कहाँ से आयी ? अगर आपने कहा कि अंडा । तो बिना मुर्गी के अंडा कहाँ से आया ?..जबकि इसमें कोई बडी बात नहीं है । निसंदेह मुर्गी पहले हुयी ।
 हमारे पौराणिक इतिहास में इससे संबन्धित घटनाओं की भरमार है । क्या आपको वाल्मीकि द्वारा सीता पुत्र कुश को कुशा के तिनकों द्वारा बनाने की बात याद है ? क्या आपको बृह्मा द्वारा श्रीकृष्ण की परीक्षा लेने पर श्रीकृष्ण द्वारा एक महीने तक तमाम गोपिकाओं के डुप्लीकेट बना देने की याद है ? क्या आपको मालूम है । द्रोपदी यग्य अग्नि से पैदा हुयी ? जिसकी वजह से उसका एक नाम याग्यसेनी भी था । क्या आपको मालूम है कि मेघनाथ ने राम और उनकी सेना को भृमित करने के लिये माया सीता का निर्माण किया था ? क्या आपको मालूम है । सीताहरण से पहले ही उसका स्थान नकली सीता ले चुकी थी । कितने उदाहरण बताऊँ । शुरू में आपका बाप परमात्मा अकेला ही था । तब उसने इच्छा व्यक्त की । मैं एक से अनेक हो जाऊँ । ( ये पूर्ण अवस्था में होता है । ) बताइये । उस समय संभोग करने के लिये कौन सी औरत मौजूद थी ? जो बच्चे पैदा करती । इससे निम्न मंडलों की सृष्टि भी ऐसे ही हुयी । जिसे संकल्प सृष्टि कहते हैं । इच्छानि सृष्टि नाम की ये योग सिद्धि या उपलब्धि एक उच्चग्यान द्वारा प्राप्त होती है । जो इन दिव्यात्माओं को प्राप्त थी । पुरुष के वीर्य से निकला । एक चेतन शुक्राणु । जो स्त्री की योनि में डिम्ब से क्रिया करके संतान का निर्माण करता है । उसका निर्माण शरीर से नहीं होता । बल्कि ये चेतन तत्व स्वतः विधमान है ।
अब अदृश्य प्रकृति और चेतन के इस रहस्य को जानने वाले अपनी क्षमता अनुसार उसका मनचाहा उपयोग कर लेते हैं । जो क्रिया संतान निर्माण हेतु स्त्री के गर्भ में होती है । ( वहाँ भी तो प्रकृति ही का कार्य है । ) वही वे चेतन केन्द्रक का बाहर प्रयोग करके उस पर प्रकृति के आवश्यक मैटेरियल आवरण चढा देते हैं । और नये शरीर का जन्म हो जाता है । क्योंकि जो धर्म इतिहास द्रोपदी को भरी सभा में अपने ही घरवालों द्वारा नंगा किये जाने की बात लिखने की हिम्मत रखता है । जो राम के पिता दशरथ को संतानोत्पति में अक्षम कहने की हिम्मत रखता है । उसे फ़िर ये लिखने में क्या आपत्ति हो सकती थी ? कि व्यास ने पांडु । धृतराष्ट । विदुर की माँ के साथ संभोग करके उनको पैदा किया था ? जो इतिहास ये बता सकता है कि स्वर्ग के राजा देवराज इन्द्र ने गौतम नारी अहिल्या के साथ छल से संभोग किया था । और अहिल्या संभोग से पहले ही जान गयी थी कि उसके साथ यौन सहवास करने वाला उसका पति गौतम नहीं कोई और है । अपनी लडकी अंजनी यानी हनुमान की माँ द्वारा देख लेने पर उससे ये कहना कि अपने पिता को मत बताना ।
जो इतिहास ये सब लिखने की हिम्मत रखता है । उसे ये लिखने में क्या संकोच होगा कि कुन्ती ने देवताओं से कामभोग कर बच्चे पैदा किये । क्योंकि उसका पति अक्षम था । या पौराणिक कथाओं में औरतों के विचलित होने या कामभावना में बहक जाने के किस्से हैं नहीं क्या ? साफ़ साफ़ लिखे गयें हैं ।..तो उन्ही धर्मगृन्थों का सहारा लेकर बाद में समाज के लोगों ने दैहिक संभोग को नियोग बता दिया । क्योंकि वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे समागम के बिना भी देह का निर्माण हो सकता है । आप उस समय की बात छोङ दें । इस समय औरतें जब पति के द्वारा बच्चा पैदा नहीं होता । तो अपनी कदर कम होने के डर से । बच्चे की अत्यधिक इच्छा से । वंश चलाने आदि की इच्छा से । बिना किसी धार्मिक क्रियाकलाप के । बिना पडुआ मिट्टी लेपन करे । उल्टे परफ़्यूम आदि से चमाचम होकर । इच्छित पुरुष के पास चली जाती हैं ।
 तो निष्कर्ष यही है कि शास्त्रों की देखादेखी । जो नियम बनाकर कि शास्त्र इसकी इजाजत देते हैं ?? स्त्री पुरुष को नियोग के नाम पर संभोग की छूट दी गयी । वो दरअसल नियोग नहीं संभोग था । संभोग है । लेकिन व्यास प्लस हस्तिनापुर की रानियों द्वारा । कुन्ती प्लस देवताओं द्वारा । श्रंगी ऋषि का यग्य चरु प्लस दशरथ की तीनों रानियाँ का वास्तव में नियोग था । जिसमें पावरफ़ुल योगी द्वारा  संकल्प शक्ति से स्त्री गर्भ में प्रतिष्ठित कर दिया जाता है । इसको असली नियोग कहते हैं । अधिक शक्ति वाले योगी को स्त्री शरीर की आवश्यकता और उसमें नौ माह तक बच्चे को पोषण देने की भी आवश्यकता नहीं होती । वह अदृश्य प्रकृति ( जो कहीं लन्दन में नहीं है । जहाँ आप बैठे हो । या कोई भी स्थान हो । उसके कण कण में ये चेतन तत्व और प्रकृति तत्व मौजूद हैं । जो आपस में निरंतर गति करते हुये संभोग सा कर रहे हैं । इसीलिये शास्त्रों में लिखा है । जड प्रकृति चेतन पुरुष से निरंतर संभोग कर रही है । ) से ही वह कार्य ले लेता है । जो स्त्री गर्भ में सम्पन्न होता है । यही श्रीकृष्ण जानते थे । यही वाल्मीकि जानते थे । यही रावण जानता था । यही मेघनाथ जानता था ।

12 comments:

  1. जो भी हिन्दू पाठक हैं उनसे अनुरोध है कि किसी प्रोपगंडा का शिकार न हों। आज सारे धर्मो के सारे शास्त्र हिंदी में सरल भाषा में मिल जाते हैं, जो जानना है वो खुद पढ़ें। साथ ही ये बात भी जान लें कि सनातन धर्म बहुत व्यापक है और इसका स्वरूप निरंतर समय के साथ बदलता रहा है, हम किसी किताबी ज्ञान को अंतिम नहीं मानते हैं इसीलिए असंख्य ग्रंथों की की रचना हुई है। हमारा कोई ग्रंथ ईश्वरीय कथन नहीं है, बल्कि अपने समय की वास्तविकता और सामाजिक संरचना की पृष्ठभूमि में उसी समय के विद्वानों द्वारा लिखा गया था। कई बातें जो आज आपको विसंगतियां लगेंगी जो आज के समय के हिसाब से उचित नहीं है। इसलिए सिर्फ जानकारी के लिए पढ़ें। सबसे जरूरी बात ये कि, कई सतही समझ वाले लोग 2..4 पंक्तियां यहाँ वहाँ से उठा कर गलत अर्थ बना कर यहाँ तक कि झूठ मिला कर परोस रहे हैं।
    इसलिए अपनी अकल लगाओ, खुद पढ़ो, किसी पर यकीन ना करो।

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    1. 🤣🤣🤣🤣गलत अर्थ कैसा निकल लेगा कोई भी हम तो संस्कृत जानते नहीं तो हम तो गलत मतलब नहीं निकाल सकते ये जिन्होने भी वेदो का भाष्य किया है वे सब के सब सनातनी ही तो है और रही max muller की बात तो वो तो विदेश से संस्कृत नहीं सीख सकता उसने भी तो भारत से ही संस्कृत सीखा होंगा और ये पोस्ट मे जो भी proof diya gaya hei वो भी बिलकुल सही है आप जाके खुद देख सकते है

      धन्यवाद 🙏 🙏 🙏

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    2. duniya ki saari dhaarmik qitaab bekaar hai,stephen hawking ko follow karo r research me juro

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  2. bhaai tu pehle apna halaala dekh ,ek larki jitna bar divorce alag alag aadmi se legi r fir se waapas pichhle pati ko aayegi to use halaalaa karna hoga,r dusri baat ek se adhik legal taur pr shaadi karnaa zaayaaz h pr ab pati pehle waala nahi raha na,isi tarah 10 divorce karne k baad 10 pati k ling ka samna karegi,

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  3. ye kaun saa mahaan karya h,ye to indirect prostitution k siva kuch bhi nahi

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  4. bhaai tu itna bta tere dharm ka koi insaan kisi tarah napunsak ho jaaye r usne bachche paida nahi kiye,r wah apni biwi kochhorna nahi chahta h r wah bachche bhi chaahta h to tere dharm me iska kya vidhaan h

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  5. agar kisi aurat ka pati pardesh chala gya ho,r uska koi khoz khabar nahi h,ki wah zinda hai ya murda,to aurat ki umra bhi jaa rahi h,r aurat bachche paida karna chahti h,lekin sasuralwaale izaazat nahi de rahe kyoki uske beta na bahu ko taalaaq nahi diya h,to tere dharm k anusaar ispr kya vidhaan h

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  6. नियोग और व्याभिचार में क्या अन्तर हैं ?

    जैसे बिना विवाहितों का व्याभिचार होता है वैसे बिना नियुक्तों का व्याभिचार कहाता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि जैसे नियम से विवाह होने पर व्याभिचार न कहावेगा तो नियमपूर्वक नियोग होने से व्याभिचार न कहावेगा ।

    फिर भी बहुत से लोग आलोचना करते हुए कहते हैं कि व्याभिचार और नियोग एक समान हैं। दोनों में कोइ अन्तर नहीं है। इसलिए नियोग भी पाप और अधर्म है। जैसे अपराधी किसी को चाकू से घायल करता है या कोई भी अंग काटता है तो वह अपराध है क्योंकि उसमें कोई नियम और विधि नहीं है। परन्तु जब एक शल्य चिकित्सक किसी रोगी का कोइ अंग चाकू से काटता है तो वह नियम से करता है । भले ही वह चाकू से रोगी को चोट पहुंचा रहा है परन्तु वह चाकू का प्रयोग नियम और चिकित्सा विधि के अनुसार रोग़ी के हित के लिए करता है। इसी प्रकार व्याभिचार और वेश्यागमन का कोइ नियम नहीं है और समाज के लिए हानिकारक है। परन्तु नियोग विधि और नियमों से बंधा हुआ है और समाज के हित में है।

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  7. बाइबिल में नियोग
    चूँकि इसाई मत वेदों के बहुत बाद स्थापित हुआ है अत इसमें भी परम्पराओं से चली आ रही नियोग प्रथा को अपना लिया था । परंतु विशुद्ध रूप नहीं, अनेकों त्रुटि साथ धारण कर ली ।

    तब यहूदा ने ओनान से कहा- अपनी भाई की बीवी के पास जा और उसके साथ द्वार का धर्म करके अपने भाई के लिए संतान जन्मा- उत्पत्ति पर्व 38/8

    जब कई भाई संग रहते हो और उनमें से एक निपुत्र मर जाये तो उसकी स्त्री का ब्याह पर गोत्री से न किया जाये-उसके पति का भाई उसके पास जाकर उसे अपनी स्त्री कर ले – व्यवस्था विवरण 25/5-10

    यदि देवर नियोग से इंकार करे तो भावज उसके मुह पर थूके और जूते उसके पाव से उतारे- व्यवस्था 25/2




    शंका 7. क्या इस्लाम में भी नियोग का विधान हैं ?

    इस्लाम में नियोग का विधान
    चूँकि इस्लाम वेदों के बहुत बाद स्थापित हुआ है अत इसमें भी परम्पराओं से चली आ रही प्रथा को अपना लिया था ।

    सूरत कलम रुकुअ 1

    वलीद घबराया और तलवार खीचकर अपनी माँ से कहा- सच बता की मैं किसका बीटा हूँ? माँ ने कहाँ-तेरा बाप नामर्द था, और तेरे चचेरे भाई की आंखे हमारी जायदाद पर लगी हुई थी। मैंने अपने गुलाम से बदफैली (नियोग ) कराई और तू पैदा हुआ । – तफसीर मूज सु 59 और गजिन मतीन सूरत 45

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  8. अबे बेवक़ूफ़ badfali कारी मतलब गुनाह kara had hai ��������

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  9. चल बता कि तेरी बकचोदी कहां लिखी है अथर्व वेद में....तेरी कुरगांड में और तेरी हगदीसों में हलाला जरूर लिखा है
    भोषडी के बिना पढ़े कुछ भी हग देगा अपनी हगदीसों की तरह🤣🤣🤣

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