Wednesday 31 August 2016

वेद ईश्वर प्रदत्त यानी दी हुई है

कहते है वेद ईश्वर प्रदत यानि दी हुई है !
किस तरह से दी एक एक अलग ही सवाल पैदा करता है कयूकि देने की प्रक्रिया ईश्वर ने नहीं बताई , विद्द्वान कहते है की श्रुति यानि बोल के दिया और ऋषियो ने यद् कर लिया ,और वेसे ही जबानी आगे बढ़ाते रहे !
यहाँ पे सवाल पैदा होता है की ईश्वर ने जैसे दिया क्या उसी प्रकार ऋषियो ने भी आगे बढ़ाया शब्द by शब्द ?
क्या इस सम्भव है , आज एक विद्द्वान जब कोई भले ही ओ  उसकी लिखी हुई हे केउ न हो ओ उसे शब्द के शब्द नहीं पढ़ सकता जरूर कुछ शब्द इधर उधर होना सम्भव है ?
वेदों के मामले में भी ऐसा ही हुआ जिसके कारन आज हजारो बिरोधाभास पाया जाता है वेदों में!
क्या वैदिक ईश्वर को इस बात का ज्ञान नहीं था ?
आज वेदों की लिखित किताब कोई लिपि नहीं मिलती है जो ये बात साबित करे की असली वेद कौन सा है , अगर वैदिक ईश्वर ने इस बात का ज्ञान ऋषियो को दिया होता तो आज एक असली किताब होती , आज असली  किताब  न होने के कारन लोग अपने मन मुताबिक उसका अनुवाद किया और उसे ही सत्य माना , जैसे आर्य समाज का अनुवाद हिन्दू समाज के अनुवाद से नहीं मिलता और हिन्दू का अंग्रेजो के!
जिसके कारन आज हजारो बुराइय फैली हुई है !
आज ऋग्वेद का पहला मंत्र पढ़ा तो एक सवाल पैदा हुआ की जो वैदिक ईश्वर सबका मालिक बताता है क्या ओ भी किसी की स्तुति वंदना इबादत कर सकता है ?
ऋग्वेद मंडल १-सूक्त १ मंत्र १= हम अग्नि देव की स्तुति करते है (कैसे अग्निदेव )जो यज्ञ (श्रेष्ठतम पारमार्थिक कर्म )के पुरोहित ( आगे बढाने वाले ) देवता अनुमोदन देने वाले ) शृत्विज ( समयनाकूल यज्ञ का सम्मपदं करने वाले )होता (देवो का आह्वाहन करने वाले ) और याजको को रत्नों से ( यज्ञ के लाभो से )बिभूषित करने वाले है !

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